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Lawrence Kohlberg Notes in Hindi

(लॉरेंस कोलबर्ग/कोहलबर्ग नोट्स)

आज हम आपको Lawrence Kohlberg Notes in Hindi (लॉरेंस कोलबर्ग) के नोट्स देने जा रहे है जिनको पढ़कर आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और यह नोट्स आपकी आगामी परीक्षा को पास करने में मदद करेंगे | ऐसे और नोट्स फ्री में पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर रेगुलर आते रहे, हम नोट्स अपडेट करते रहते है | तो चलिए जानते है, लॉरेंस कोलबर्ग/Lawrence Kohlberg के बारे में विस्तार से |

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Lawrence Kohlberg

(लॉरेंस कोलबर्ग/कोहलबर्ग/कोहल्बर्ग)

लॉरेंस कोलबर्ग (1927-1987) एक प्रभावशाली अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे जो नैतिक विकास के अपने सिद्धांत के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। उन्होंने स्विस मनोवैज्ञानिक जीन पियागेट के काम पर विस्तार किया और एक मंच सिद्धांत विकसित किया जो बताता है कि व्यक्ति अपनी नैतिक तर्क क्षमता कैसे विकसित करते हैं। कोलबर्ग के सिद्धांत का मनोविज्ञान, शिक्षा और नैतिकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

  • नैतिकता (Morality): यही वह गुण है। जिससे हमें सही और गलत की पहचान होती है। यह सामाजिक परिवेश से सीखा जाता है। जब बच्चा पैदा होता है तो वह न तो नैतिक होता है और न ही अनैतिक। वह समाज से ही अच्छा या बुरा सीखता है।
  • नैतिक विकास (Moral Development): नैतिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है। जिसे बच्चा समाज से सम्मानित मूल्यों को ग्रहण करता है। और इन्ही मूल्यों के आधार पर सही और गलत का विवेक कर पाता है।

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क्या आप Lawrence Kohlberg के बारे यह बात जानते हैं?

(Did you know this fact about Lawrence Kohlberg?)

क्या आप जानते हैं कि लॉरेंस कोलबर्ग ने सर्वप्रथम नैतिक विकास का सिद्धांत 1969 ई. में प्रतिपादित किया था? यह 1981 में दिया गया था और उसके बाद 1981 और 1984 में इसमें संशोधन किया गया था।

  • लॉरेंस कोलबर्ग (1927-1987) के नैतिक विकास के छह चरण हैं। उन्होंने पाया कि ये चरण सार्वभौमिक हैं। नैतिक दुविधाओं को हल करने में इन छह चरणों में से प्रत्येक अपने पूर्ववर्ती की तुलना में अधिक पूर्ण है।
  • पियाजे की भाँति कोलबर्ग ने भी पाया कि नैतिक विकास कुछ चरणों में होता है। इन सवालों के लिए अलग-अलग उम्र के बच्चों की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करके, कोहलबर्ग ने पाया कि जैसे-जैसे लोग बड़े होते गए, नैतिक तर्क कैसे बदलते गए। इस सैंपल में पहले 4 से 16 साल के लड़के और बाद में 28 साल तक के लोगों को शामिल किया गया।
  • नैतिकता का तात्पर्य सही और गलत के बीच के अंतर को स्पष्ट करना है। नैतिकता समाज का वह तत्व है, जिसकी उपस्थिति में सभ्य समाज का निर्माण किया जा सकता है। कोलबर्ग के अनुसार, सही और गलत के बारे में निर्णय लेने में शामिल विचार प्रक्रिया को नैतिक तर्क (Moral Reasoning) कहा जाता है।
  • सही और गलत का निर्णय न कर पाने की स्थिति को नैतिक दुविधा कहते हैं। बालकों में नैतिकता 4 वर्ष की आयु से प्रारम्भ हो जाती है, जिसका प्रमुख आधार भय/भय/दंड का प्रभाव है।
  • कोलबर्ग ने पाया कि नैतिक विकास के ये चरण सार्वभौमिक हैं। कोलबर्ग का मानना था कि बच्चे का नैतिक विकास विशिष्ट से सामान्य (Specific to General) की ओर बढ़ता है। उन्होंने नैतिक चिंतन के तीन बुनियादी स्तर दिए हैं, जिन्हें पुन: दो चरणों में विभाजित किया गया है।

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नैतिक विकास की अवस्थाएं

(Stages of moral development)

नैतिक विकास की अवस्थाएँ: कोहलबर्ग ने नैतिक विकास की कुल छः अवस्थाओं का वर्णन किया है, परन्तु उन्होंने दो अवस्थाओं या उपअवस्थाओं को एक साथ रखकर तीन स्तर बनाए हैं –

  1. Pre-Conventional Level (पूर्व परंपरागत स्तर)
  2. Conventional Level (परंपरागत/रूढ़िगत स्तर)
  3. Post-Conventional Level (पश्च परंपरागत स्तर)

कोहलबर्ग ने प्रस्तावित किया कि नैतिक विकास चरणों की एक श्रृंखला में होता है, जिसमें प्रत्येक चरण पिछले वाले पर निर्माण होता है। उन्होंने इसे  3 level और 6 stage में बांटा है। प्रत्येक Level में 2 Stage हैं।

Level Stage Social Orientation
Pre-conventional 1 Obedience and Punishment Orientation
2 Individualism, Instrumentalism, and Exchange/ Instrumental Orientation
Conventional 3 Good Boy/Good Girl/Good Boy Orientation
4 Law and Order Orientation/ Authority and Social Order
Post-conventional 5 Social Contract Orientation
6 Principled Conscience/Universal-Ethical-Principal Orientation

Kohlberg’s Theory of Moral Development 1958

(कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत 1958)

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(1) पूर्व-पारंपरिक स्तर (Pre-Conventional Level) :

इसको पूर्व बाल्यावस्था का नाम दिया गया है। इस अवस्था में बालक नैतिकता, निरपेक्ष से ग्रहण करता है। अर्थात कोई बात या तो सही है या गलत माता-पिता स्पष्ट करते हैं कि उनके आदेशों का पालन बिना तर्क के आधार पर होना चाहिए।

(4 से 10 वर्ष) – इसे बाल्यावस्था भी कहते हैं। यह नैतिक सोच का निम्नतम स्तर है। इस अवस्था में क्या सही और क्या गलत है यह बाहर से मिलने वाले दंड और उपहारों से प्रभावित होता है। इस स्तर पर नैतिकता का बाहरी नियंत्रण होता है। जब बच्चा किसी बाहरी शारीरिक घटना के संदर्भ में किसी व्यवहार को नैतिक या अनैतिक मानता है, तो उसकी नैतिक तर्क शक्ति को पूर्व-पारंपरिक स्तर का कहा जाता है। इसे वितरणात्मक यथार्थवाद का स्तर भी कहा जाता है। कोलबर्ग ने इस अवस्था में 4 से 10 वर्ष की आयु के बच्चों को लिया।
इस स्तर के अंतर्गत दो चरण या उप-चरण होते हैं –

  • आदेश और सजा का चरण/ आज्ञा एवं दंड की अवस्था (Stage of Order and Punishment)
  • अहंकार का चरण / अहंकार की अवस्था (Stage of Ego)

स्टेज 1. आज्ञाकारिता और सजा अभिविन्यास / आदेश और सजा का चरण (Orientation OR Stage of Order and Punishment): इस अवस्था में आज्ञा का पालन  दण्ड के भय पर आधारित होता है। बच्चों को नैतिकता का वास्तविकता ज्ञान नहीं होता। वे दण्ड की शक्ति रखने वाले व्यक्ति के प्रति अंधी श्रद्धा रखते है। उन्हें दूसरों के अधिकारों का कोई ज्ञान नहीं होता। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली स्थिति होती है।

  • यह नैतिकता के पूर्व-पारंपरिक चरण का पहला चरण है। यह बाहरी सत्ता पर आधारित है। यहां नैतिक सोच सजा से बंधी है। उदाहरण के लिए, बच्चों का मानना है कि उन्हें बड़ों की बात माननी चाहिए, नहीं तो बड़े उन्हें सजा देंगे। स्वीकृत व्यवहार बच्चे द्वारा पुरस्कार पाने या सजा से बचने के लिए किया जाता है। यहाँ यह कहावत ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ लागू होती है।
  • उदाहरण: इस अवस्था में एक बच्चा यह मान सकता है कि स्टोर से खिलौना चुराना गलत है क्योंकि वे पकड़े जा सकते हैं और अपने माता-पिता या स्टोर के मालिक द्वारा दंडित किए जा सकते हैं। वे समझते हैं कि उनके कार्यों के परिणाम होते हैं और वे दंड से बचने के लिए नियमों का पालन करते हैं।

चरण 2. व्यक्तित्व और विनिमय या अहंकार की अवस्था (Stage of Ego): इस अवस्था में बच्चा अपनी आवश्यकताओं के प्रति सचेत रहता है। दूसरों के अधिकारों को भी समझने लगता है। इसी धारणा से वह दूसरों की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करता है।

  • यह पूर्व पारंपरिक चरण का दूसरा चरण है। इस अवस्था को वाद्य सापेक्षता भी कहा जाता है। यह नैतिक सोच की एक व्यक्ति-केंद्रित, अंतर्धार्मिक-उन्मुख स्थिति है। बच्चा एगोसेंट्रिज्म यानी ‘इसमें मेरे लिए क्या है?’
    इस अवस्था में बच्चे की सभी नैतिक गतिविधियाँ उसकी आवश्यकताओं और इच्छाओं पर केंद्रित होती हैं। बालक के लिए केवल वही कर्म नैतिक है, जो उसके हित में हो।
    यहाँ बच्चा सोचता है कि अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि हमें दूसरों को भी उनकी रुचि के अनुसार कार्य करने का अवसर देना चाहिए। इसलिए इस स्तर की नैतिक सोच कहती है कि वही बात सही है जिसमें समानता का व्यवहार किया जा रहा हो।
    यदि हम दूसरों की कोई इच्छा या आवश्यकता पूरी करते हैं, तो वे भी हमारी इच्छा पूरी करेंगे। यहाँ कहावत ‘तुम मेरी पीठ खुजलाओ, मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊंगा’ चलन में आ जाती है।
  • उदाहरण: इस स्तर पर एक बच्चा अपने दोस्तों या भाई-बहनों के साथ खिलौने साझा करने में व्यस्त हो सकता है। वे समझते हैं कि साझा करने से, वे दूसरों से बदले में उनके साथ साझा करने की अपेक्षा भी कर सकते हैं। वे सोच सकते हैं, “अगर मैंने अपने दोस्त को अपने खिलौने से खेलने दिया, तो वे मुझे बाद में अपने साथ खेलने देंगे।” वे नैतिकता को व्यक्तिगत लाभ और पारस्परिकता के संदर्भ में देखते हैं।

(2) पारंपरिक / ब्रह्मांडीय स्तर (Conventional Level) :

इसे उतर बाल्यावस्था कहा गया है। इस अवस्था में माता-पिता द्वारा दिया गया नैतिकता संबंधी ज्ञान परिवर्तित होने लगते है। फिर भी नैतिक यर्थाथवाद की स्थिति विद्यमान रहती है। इस पर भी व्यक्ति के आचरण पर बाहरी नियन्त्रण स्थापित हो जाता है। यहां भी दूसरों के नियमों का पालन किया जाता है। परंतु अभिप्रेरणा आंतरिक होती है।

(10 से 13 वर्ष)- इसे किशोरावस्था भी कहते हैं। इस स्तर पर, लोग चीजों को एक पूर्वकल्पित धारणा से देखते हैं। उदाहरण के लिए, बच्चों का व्यवहार उनके माता-पिता या किसी बड़े व्यक्ति द्वारा बनाए गए नियमों पर आधारित होना चाहिए। इस स्तर पर नैतिकता पर सामाजिक नियंत्रण होता है। इस अवस्था में कोलबर्ग ने उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर के अर्थात 10 से 13 वर्ष की आयु के बच्चों को लिया।
इस स्तर पर नियमों और सिद्धांतों के अनुसार नैतिकता होती है। इसे नैतिक यथार्थवाद का स्तर भी कहा जाता है। इस अवस्था को भी दो उप-अवस्थाओं या अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है –

  • Stage of Appreciation (प्रशंसा की अवस्था)
  • Stage of Respect for Social System (सामाजिक व्यवस्था के प्रति सम्मान की अवस्था)

स्टेज 3. प्रशंसा का चरण (Stage of Appreciation): इस अवस्था में अच्छे बच्चे/बच्ची की धारणा प्रमुख रहती है। नैतिक व्यवहार वह समझा जाता है जो दूसरो को खुश रखे और दूसरों द्वारा स्वीकृत हो।

  • इस अवस्था में लोग विश्वास, दूसरों की देखभाल और दूसरों के प्रति उचित व्यवहार को अपने नैतिक व्यवहार का आधार मानते हैं। बच्चे और युवा अपने माता-पिता द्वारा निर्धारित नैतिक व्यवहार के मानकों का पालन करते हैं, जो उन्हें उनके माता-पिता की नज़र में ‘अच्छा लड़का’ या ‘अच्छी लड़की’ बनाते हैं। इस चरण का मुख्य लक्ष्य दूसरों को खुश करना या स्वीकृति प्राप्त करना है, जिससे उसकी प्रशंसा होगी।
  • उदाहरण: इस स्तर पर एक बच्चा या युवा किशोर भरोसे, दूसरों की देखभाल और उचित व्यवहार को प्राथमिकता दे सकता है। उदाहरण के लिए, वे एक स्थानीय दान में स्वयंसेवा कर सकते हैं या एक स्कूल के धन उगाहने वाले कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं, जिसमें वे विश्वास करते हैं। वे अपने माता-पिता, शिक्षकों या साथियों से अनुमोदन और स्वीकृति प्राप्त करने के लिए नैतिक व्यवहार में संलग्न होते हैं, क्योंकि इससे उन्हें प्रशंसा मिलती है और एक “अच्छे लड़के” या “अच्छी लड़की” के रूप में उनकी आत्म-छवि को पुष्ट करता है।

स्टेज 4. सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखना या सामाजिक व्यवस्था के लिए सम्मान की अवस्था (Stage of Respect for Social System) : इस अवस्था में प्रवेश से पहले बालक समाज को केवल इसलिए महत्वपूर्ण मानता है कि वह उसकी प्रशंसा करता है। अब वह समाज को स्वयं एक लक्ष्य मानने लगता है। इस अवस्था में पहुँचकर स्वयं यह समझने लगता है कि सामाजिक नियमों के विरुद्ध प्रत्येक कार्य अनैतिक है।

  • यह कोलबर्ग के सिद्धांत का चौथा चरण है। इस अवस्था की नैतिकता और अनैतिकता समाज को प्रभावित करने लगती है। इस स्थिति में लोगों के नैतिक विकास की अवस्था सामाजिक व्यवस्था, कानून, न्याय और कर्तव्यों पर आधारित होती है। इस अवस्था में बालक सामाजिकता के गुणों को आत्मसात करता है।
    यह सामाजिक नियमों के प्रति नैतिकता का विकास करता है। इसी अवस्था में उसे भले-बुरे का ज्ञान हो जाता है। वह समझने लगता है कि कौन सा व्यवहार उसके समाज के हित में है या नहीं। वह न्याय और कर्तव्यों को समझने लगता है।
    जैसा कि किशोर सोचते हैं, समाज को अच्छी तरह से चलाने के लिए, इसे कानून द्वारा बनाए गए दायरे में रहना चाहिए।
  • उदाहरण: इस अवस्था में एक किशोर सामाजिक व्यवस्था, कानून, न्याय और कर्तव्यों के महत्व को पहचानता है। वे समझते हैं कि कुछ व्यवहार या कार्य समाज के कामकाज को बाधित कर सकते हैं और इसकी भलाई में बाधा डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, वे यातायात कानूनों का पालन करना चुन सकते हैं और व्यवस्था बनाए रखने और अपनी और दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक मानदंडों का पालन कर सकते हैं। वे समाज के प्रति कर्तव्य की भावना विकसित करते हैं और सामाजिक नियमों और विनियमों का पालन करने के महत्व को पहचानते हैं।

(3) पोस्ट-पारंपरिक स्तर (Post-Conventional Level):

यह किशोरावस्था के आस पास का समय होता है। इस स्तर पर आचरण पर नियत्तणं आंतरिक हो जाता है। नैतिक भुट्टो में वह आंतरिक चिंतन प्रक्रिया के आधार पर निर्णय लेता है। वह स्वायत नैतिक सिद्धान्तों पर अधिक बल देता है।

(13 वर्ष से वयस्कता तक) – इसे युवा वयस्कता के नाम से भी जाना जाता है। इसे आत्म-अवशोषित नैतिक मूल्य स्तर भी कहा जाता है। कोहलबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांत के इस स्तर पर, वैकल्पिक रास्तों की खोज की जाती है और फिर व्यक्तिगत लाभ के व्यवहार का मार्ग खोजा जाता है। व्यक्तिगत निर्णय स्व-चयनित सिद्धांतों पर आधारित होते हैं और नैतिक तर्क व्यक्तिगत अधिकारों और न्याय पर आधारित होते हैं।
इस स्तर पर नैतिकता पर आंतरिक नियंत्रण होता है। इस स्तर को सहयोग की नैतिकता के रूप में भी जाना जाता है। इस स्तर पर 13 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को लिया गया। कोलबर्ग ने अपने तीसरे स्तर को भी दो उप-अवस्थाओं में विभाजित किया है –

  • Stage of Social Contract (सामाजिक अनुबंध/समझौते की अवस्था)
  • Stage of Conscience/Universal Principle. (विवेक/अंतरात्मा/ सार्वभौमिक सिद्धांत का चरण।)

स्टेज 5. सामाजिक अनुबंध का चरण (Stage of Social Contract): इस अवस्था मे बालक समाज से सम्पर्क या समझते को मजबूत बनाने के लिए सामाजिक नियमों का पालन करता है। उसे डर रहता है कि समाज के साथ उसका सम्बन्ध न टूटे | परंतु इस अवस्था में वह समझने लगता है यदि समाज की सहमति हो तो सामाजिक नियमों को बदला भी जा सकता है। अर्थात् वह समझ जाता है कि सामाजिक नियम निश्चित नहीं होते है |

  • इस अवस्था में व्यक्ति समाज के नियमों का पालन करता है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह समाज के साथ समझौते को बनाए रखता है या तोड़ता है। इस अवस्था में व्यक्ति यह सोचने लगता है कि कुछ मूल्य, सिद्धांत और अधिकार कानून से ऊपर हो सकते हैं। व्यक्ति वास्तविक सामाजिक व्यवस्थाओं का मूल्यांकन इस दृष्टिकोण से करना शुरू करते हैं कि वे बुनियादी अधिकारों और मूल्यों की किस हद तक रक्षा करते हैं।
  • उदाहरण: इस स्तर पर एक युवा वयस्क मानता है कि सामाजिक नियम और समझौते महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह भी समझता है कि ऐसे उदाहरण हो सकते हैं जहां इन नियमों को चुनौती दी जा सकती है या संशोधित किया जा सकता है। वे सामाजिक व्यवस्थाओं के मूल्यांकन में बुनियादी अधिकारों और मूल्यों के संरक्षण पर विचार करने लगते हैं। उदाहरण के लिए, वे सामाजिक न्याय के कारणों की वकालत करने में सक्रिय रूप से संलग्न हो सकते हैं, जैसे कि विरोध या अभियानों में भाग लेना, जिसका उद्देश्य असमानता या भेदभाव जैसे मुद्दों को दूर करना है। वे सामाजिक मानदंडों के सख्त पालन पर निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों को प्राथमिकता देते हैं।

चरण 6. सार्वभौमिक सिद्धांत या विवेक का चरण (Stage of Conscience): विवेक की अवस्था (universal ethic), इसे विवेक की अवस्था भी कहा जाता है। इस अवस्था तक व्यक्ति के अच्छे बुरे, उचित अनुचित आदि विषयों पर स्वयं के व्यक्तिगत विचार विकसित हो जाते है, एवं अपने बनाए गए नियमों पर चलता है।

  • इसे विवेक की अवस्था भी कहते हैं। यह सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों पर आधारित नैतिक सोच की स्थिति है। यह कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धांतों का उच्चतम और छठा चरण है। इस अवस्था में व्यक्ति अपने मनोभावों को वश में रखकर तथा अपनी मानसिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक विशेष नैतिक ढंग से व्यवहार करता हुआ पाया जाता है।
    इस चरण में, व्यक्ति सार्वभौमिक मानवाधिकारों के आधार पर नैतिक मानकों का निर्माण करता है। जब भी कोई व्यक्ति अंतरात्मा के संघर्ष में फंस जाता है, तो वह तर्क देता है कि व्यक्ति को विवेक के साथ जाना चाहिए, भले ही वह निर्णय जोखिम भरा हो। इसलिए उसे कुछ भी करने से पहले अपनी भावनाओं के अलावा दूसरे के जीवन के बारे में भी सोचना चाहिए।
  • उदाहरण: इस स्तर पर एक व्यक्ति अपनी नैतिक सोच को सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों पर आधारित करता है। वे अपने विवेक और आंतरिक नैतिक दिक्सूचक द्वारा निर्देशित होते हैं। वे दूसरों की भलाई को प्राथमिकता देते हैं और व्यापक पैमाने पर अपने कार्यों के निहितार्थों पर विचार करते हैं। उदाहरण के लिए, वे अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करने के लिए सविनय अवज्ञा के कृत्यों में संलग्न हो सकते हैं या जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए मानवीय प्रयासों में भाग ले सकते हैं, भले ही इसके लिए व्यक्तिगत जोखिम उठाना पड़े। वे सार्वभौमिक मानवाधिकारों को बनाए रखते हैं और सामाजिक अपेक्षाओं के बावजूद अपने नैतिक सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेते हैं।

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Lawrence Kohlberg’s Theory of Moral Development Table

(लॉरेंस कोलबर्ग की नैतिक विकास तालिका का सिद्धांत)

यहां लॉरेंस कोहलबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांत के चरणों और स्तरों की रूपरेखा के साथ-साथ प्रत्येक चरण के लिए एक उदाहरण दिया गया है:

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Level Stage Description Example
Pre-conventional Stage 1: Obedience and punishment orientation Individuals focus on avoiding punishment. एक बच्चा cookie/Biscuit चुराने से इसलिए परहेज करता है क्योंकि उसे अपने माता-पिता द्वारा डांटे जाने का डर होता है।
Pre-conventional Stage 2: Individualism and exchange Individuals make decisions based on what is in their own best interest. एक व्यक्ति अपने दोस्त की जरूरत में मदद करता है क्योंकि वह उम्मीद करता है कि उसका दोस्त बदले में उसकी मदद करेगा।
Conventional Stage 3: Interpersonal relationships Individuals value interpersonal relationships and seek approval from others. किशोर अपने साथियों द्वारा फिट होने और स्वीकार किए जाने के लिए समूह के फैशन ट्रेंड का अनुसरण करता है।
Conventional Stage 4: Maintaining social order Individuals focus on maintaining social order and following rules. एक व्यक्ति लाल बत्ती पर रुकता है, भले ही आसपास कोई अन्य कार न हो, क्योंकि वह अधिक अच्छे के लिए यातायात कानूनों को बनाए रखने में विश्वास करता है।
Post-conventional Stage 5: Social Contract and individual rights Individuals recognize the importance of social contracts and individual rights. एक व्यक्ति एक ऐसे कानून में बदलाव की वकालत करने के लिए शांतिपूर्ण विरोध में भाग लेता है जिसे वे अनुचित मानते हैं।
Post-conventional Stage 6: Universal Principles Individuals develop their own set of ethical principles based on universal human rights and justice. एक व्यक्ति मानव जीवन की पवित्रता में अपने गहरे विश्वास के आधार पर एक अन्यायपूर्ण युद्ध में भाग लेने से इंकार करता है।

कृपया ध्यान दें कि ये उदाहरण सरलीकृत हैं और व्याख्यात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किए गए हैं। वास्तविक जीवन की स्थितियों में, नैतिक तर्क जटिल हो सकते हैं और विभिन्न कारकों से प्रभावित हो सकते हैं, और व्यक्ति संदर्भ के आधार पर विभिन्न चरणों से व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं। कोलबर्ग के सिद्धांत का उद्देश्य नैतिक विकास की सामान्य प्रगति का वर्णन करना है, लेकिन इसकी सीमाओं और सांस्कृतिक विविधताओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है।


The famous Heinz Dilemma of Kohlberg (1958)

(कोलबर्ग की प्रसिद्ध हेंज दुविधा (1958)

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आज हम आपको कोलबर्ग की Heinz की कहानी बताने जा रहे हैं, (Kohlberg’s story of Heinz) जिसमें हम उनके द्वारा किए गए कार्यों का विश्लेषण करेंगे, उत्तर देने का भी प्रयास करेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं यह रोमांचकारी कहानी और जानते है इसका सार क्या है ?

नैतिक विकास के क्षेत्र में सबसे उल्लेखनीय कहानियों में से एक लॉरेंस कोहलबर्ग के शोध पर आधारित है और Heinz नाम के एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है, जो यूरोप में रहता था। Heinz की पत्नी, (Clara) , एक विशिष्ट प्रकार के कैंसर के कारण होने वाली गंभीर स्थिति का सामना कर रही थी। चिकित्सा  पेशेवरों ने Heinz को सूचित किया कि एक स्थानीय रसायनज्ञ (Chemist) द्वारा विकसित एक संभावित उपाय उपलब्ध था।

  • अपनी पत्नी की जान बचाने की अत्यावश्यकता से प्रेरित, Heinz ने दवा हासिल करने के लिए एक हताश खोज शुरू की। हालांकि, केमिस्ट ने दवा के लिए उत्पादन लागत से दस गुना अधिक कीमत की मांग की। यह मूल्य टैग Heinz के वित्तीय साधनों को पार कर गया, जिससे वह संकट की स्थिति में आ गया।
  • वित्तीय बाधा के बावजूद, Heinz ने आवश्यक धन को सुरक्षित करने के लिए सभी संभावित रास्ते तलाशे| उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों से सहायता मांगी, आवश्यक राशि का केवल आधा ही जुटा पाए। सीमित विकल्प शेष रहने पर, Heinz ने रसायनज्ञ से संपर्क करने और अपने मामले की पैरवी करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी पत्नी की गंभीर स्थिति के बारे में बताया, उनके जीवन के लिए आसन्न खतरे पर जोर दिया। उसने केमिस्ट से मूल्य कम करने या बाद में शेष राशि का भुगतान करने की अनुमति देने पर विचार करने के लिए विनती की।
  • हालांकि, लाभ के उद्देश्यों से प्रेरित Chemist ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उन्होंने दवा विकसित की थी। उसने Heinz की बेताब दलील को स्वीकार करने की कोई इच्छा नहीं दिखाई। इस अहसास का सामना करते हुए कि समय समाप्त हो रहा था और अपनी प्यारी पत्नी को बचाने की अत्यधिक इच्छा महसूस कर रहा था, Heinz ने एक कठिन निर्णय लिया। उस रात, हताशा और प्यार से प्रेरित होकर, उसने केमिस्ट की दुकान में घुसकर दवा चोरी करने का सहारा लिया। बस कहानी इतनी ही है |

यह कहानी एक नैतिक दुविधा प्रस्तुत करती है, जो कानून का पालन करने और नैतिकता की अपनी व्यक्तिगत भावना का पालन करने के बीच संघर्ष को दर्शाती है। यह मानव जीवन के मूल्य, व्यक्तियों की जिम्मेदारी और विकट परिस्थितियों में व्यक्तिगत विकल्पों के नैतिक निहितार्थ के बारे में विचारोत्तेजक प्रश्न उठाता है। इस कथा के जटिल विवरण में जाकर, हम विभिन्न नैतिक दृष्टिकोणों का पता लगा सकते हैं और हाइन्ज़ के कार्यों में शामिल नैतिक तर्क में गहराई तक जा सकते हैं।

हेंज दुविधा के जवाब में पूछे गए प्रश्न नैतिक तर्क के विभिन्न पहलुओं का पता लगाते हैं:

कोहलबर्ग ने अपनी कहानी के आधार पर दो प्रश्न किए हैं जो इस प्रकार हैं –

  1. नैतिक दुविधा (Moral Dilemma) – सही और गलत के बीच निर्णय लेने में जिन दुविधाओं या समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें नैतिक दुविधाएँ कहा जाता है।
    उदाहरण के लिए, यदि हिंज़ चोरी नहीं करता है, तो उसकी पत्नी मर जाएगी और यदि वह चोरी करता है, तो पुलिस उसे पकड़ कर जेल में डाल देगी।
  2. नैतिक तर्कणा (Moral Reasoning)  – दो विचारों के बीच चयन करना जो सही और गलत हैं।
    उदाहरण के लिए, हिंज ने अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए चोरी करने का फैसला किया।

प्रश्न: क्या हेंज को ड्रग्स चुरा लेना चाहिए था?

यह प्रश्न इस बात की जाँच करता है कि क्या कुछ परिस्थितियों में चोरी को उचित ठहराया जा सकता है, जैसे किसी प्रियजन की जान बचाना।

  • किसी व्यक्ति के नैतिक तर्क के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर भिन्न हो सकता है। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि Heinz को ड्रग्स की चोरी करनी चाहिए थी क्योंकि एक जीवन को बचाने के लिए संपत्ति के अधिकारों को प्राथमिकता दी जाती है। दूसरों का मानना हो सकता है कि परिस्थितियों की परवाह किए बिना चोरी करना कभी भी उचित नहीं है।

उत्तर: Heinz को ड्रग्स की चोरी नहीं करनी चाहिए थी। असल जिंदगी में चोरी करना गैरकानूनी और नैतिक रूप से गलत माना जाता है। संपत्ति के अधिकारों और कानून के शासन का सम्मान करने का सिद्धांत न्यायपूर्ण समाज को बनाए रखने के लिए मौलिक है। चोरी का सहारा लेने के बजाय, Heinz वैकल्पिक विकल्पों की खोज कर सकता था जैसे कि –

  • अन्य वित्तीय सहायता प्राप्त करना
  • घर के जेवर या खुद घर को ही बेच देना
  • रसायनज्ञ के साथ (धमकी भरी) बातचीत करना
  • अपने किसी मित्र से कोई वादा कर लेना या अपने मित्र के ही पैसे लेकर भाग जाना, कम से कम कोई मृत्यु दंड तो नहीं मिलेगा |
  • या उन संगठनों तक पहुँचना जो दवा तक पहुँचने के लिए तुरंत सहायता प्रदान करते हैं।

यदि आपको लग रहा है की कुछ भी करलो हालात उस समय ऐसे नहीं थे की वह कोई दूसा कदम उठा सके , उसके पास कोई और दूसरा रास्ता नहीं था । ऐसे तो फिर कोई भी जबाव नहीं दे पाएगा कोयुकि हर जबाव का कोई न कोई तोड़ निकल ही जाएगा |

प्रश्न: चोरी करना सही है या गलत, क्यों?

यह प्रश्न अंतर्निहित नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों की जांच करता है जो यह निर्धारित करते हैं कि चोरी को विभिन्न स्थितियों में नैतिक रूप से सही या गलत माना जाता है या नहीं।

  • चोरी का नैतिक मूल्यांकन व्यक्तिपरक है और किसी व्यक्ति के नैतिक ढांचे के आधार पर भिन्न हो सकता है। संपत्ति के अधिकारों और कानून के प्रति सम्मान के सिद्धांतों के कारण कुछ लोग चोरी को स्वाभाविक रूप से गलत मान सकते हैं। अन्य लोग यह तर्क दे सकते हैं कि चरम मामलों में चोरी को उचित ठहराया जा सकता है, जैसे कि जब किसी की जान बचाना आवश्यक हो।

उत्तर: आम तौर पर चोरी करना वास्तविक जीवन में नैतिक रूप से गलत और अवैध माना जाता है। नैतिक सिद्धांत, जैसे दूसरों की स्वायत्तता और संपत्ति का सम्मान करना, सामाजिक मानदंडों का आधार बनता है। जबकि Heinz की स्थिति के लिए सहानुभूति समझ में आ सकती है, नैतिक मूल्यों को बनाए रखना और समस्या को हल करने के लिए कानूनी विकल्पों की तलाश करना महत्वपूर्ण है।

प्रश्न: क्या पत्नी के लिए दवाई चुराना पति का कर्तव्य है?

यह प्रश्न व्यक्तियों के नैतिक दायित्वों और जिम्मेदारियों की पड़ताल करता है, विशेष रूप से विवाह और पारिवारिक संबंधों के संदर्भ में।

  • अपनी पत्नी के लिए दवा चुराने का पति का कर्तव्य एक जटिल नैतिक प्रश्न है। यह किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत मूल्यों, विश्वासों और स्थिति की विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि जीवनसाथी का नैतिक दायित्व है कि वह अपने साथी के जीवन को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करे, भले ही इसका मतलब कानून तोड़ना ही क्यों न हो। अन्य लोग कानून का सम्मान करने और कानूनी विकल्पों का पीछा करने को प्राथमिकता दे सकते हैं।

उत्तर: चोरी जैसी अवैध गतिविधियों में शामिल होना पति या किसी और का कर्तव्य नहीं है। वास्तविक जीवन में, व्यक्तियों की जिम्मेदारी है कि वे कानून का सम्मान करें और उसका पालन करें। जीवनसाथी का कर्तव्य अपने साथी का समर्थन और देखभाल करना है, लेकिन यह कानूनी और नैतिक सीमाओं के भीतर किया जाना चाहिए। कानूनी विकल्पों की तलाश करना और उपलब्ध संसाधनों की खोज करना अधिक उपयुक्त दृष्टिकोण होगा।

प्रश्न: क्या दवा बनाने वाले को दवा के लिए इतने पैसे मांगने का अधिकार है?

यह प्रश्न फार्मास्युटिकल उद्योग में मूल्य निर्धारण और लाभ-अर्जन की नैतिकता पर विचार करता है, यह विचार करते हुए कि क्या उनकी जीवन-रक्षक क्षमता के आधार पर मूल्य निर्धारण दवाओं की सीमाएँ हैं।

  • मूल्य निर्धारण और दवा निर्माता के अधिकारों के प्रश्न में निष्पक्षता, पहुंच और लाभ कमाने से संबंधित नैतिक विचार शामिल हैं। जबकि दवा निर्माता के पास मूल्य निर्धारित करने का कानूनी अधिकार हो सकता है, जीवन रक्षक दवा के लिए अत्यधिक मात्रा में चार्ज करने के नैतिक निहितार्थ पर बहस हो सकती है। कुछ उचित मूल्य निर्धारण और स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुंच के महत्व के लिए तर्क देते हैं, जबकि अन्य बाजार की ताकतों की भूमिका और नवाचार को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।

उत्तर: वास्तविक जीवन में, अनुसंधान और विकास लागत, उत्पादन व्यय, पेटेंट संरक्षण और बाजार की गतिशीलता सहित विभिन्न कारकों के कारण दवा का मूल्य निर्धारण महत्वपूर्ण रूप से भिन्न हो सकता है। जबकि दवा कंपनियों को इन कारकों के आधार पर मूल्य निर्धारित करने का अधिकार है, अत्यधिक उच्च कीमतें जीवन रक्षक दवाओं तक पहुंच को सीमित कर सकती हैं, जिससे नैतिक दुविधाएं पैदा हो सकती हैं। सामर्थ्य की आवश्यकता को संतुलित करना और नवाचार को प्रोत्साहित करना एक सतत चुनौती है जिसे नीति निर्माताओं और समाज को समग्र रूप से संबोधित करना चाहिए।

प्रश्न: यदि महिला की मृत्यु हो जाती है तो क्या पुलिस को हत्या के लिए केमिस्ट को गिरफ्तार करना चाहिए?

यह प्रश्न कानूनी और नैतिक उत्तरदायित्व की जांच करता है, संभावित परिणामों और रसायनज्ञ की जिम्मेदारी की खोज करता है यदि दवा की अनुपलब्धता के कारण महिला का जीवन खो जाता है।

  • पुलिस को इस परिदृश्य में हत्या के लिए केमिस्ट को गिरफ्तार करना चाहिए या नहीं यह कानूनी ढांचे और विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करता है। नैतिक दृष्टिकोण से, महिला की संभावित मृत्यु में रसायनज्ञ की भूमिका पर बहस हो सकती है। हालांकि, कानूनी प्रभाव मौजूदा कानूनों, रसायनज्ञ के इरादे और क्षेत्राधिकार जैसे कारकों पर निर्भर करेगा जिसमें घटनाएं होती हैं।

उत्तर: वास्तविक जीवन में, हत्या के लिए केमिस्ट की गिरफ्तारी कानूनी ढांचे और दवा की कमी और महिला की मौत के बीच सीधा कारण संबंध स्थापित करने वाले सबूतों पर निर्भर करेगी। यदि केमिस्ट की ओर से लापरवाही या जानबूझकर किया गया कार्य सिद्ध होता है, तो इसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं। हालांकि, ऐसे मामलों में दायित्व और दोषारोपण का निर्धारण करने के लिए गहन जांच की आवश्यकता है।

प्रश्न: क्या दवा की कीमत पर अंकुश लगाने के लिए कोई कानून नहीं है और क्यों या क्यों नहीं?

यह प्रश्न दवाओं के मूल्य निर्धारण और सामर्थ्य के संबंध में व्यापक सामाजिक और कानूनी ढांचे पर विचार करता है, जीवन रक्षक उपचारों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए विनियमों की संभावित आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

  • दवा की लागत को विनियमित करने के लिए कानूनों का अस्तित्व विभिन्न न्यायालयों में भिन्न होता है। ऐसे कानूनों की आवश्यकता सामाजिक और राजनीतिक बहस का विषय है। कुछ आवश्यक दवाओं तक सस्ती पहुंच सुनिश्चित करने के लिए मूल्य नियंत्रण या नियमों के लिए तर्क देते हैं, जबकि अन्य बाजार की गतिशीलता और कीमतों के निर्धारण में प्रतिस्पर्धा की भूमिका पर जोर देते हैं। दवाओं की लागत को कम करने के लिए कानूनों के कार्यान्वयन में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सामर्थ्य, नवाचार और स्थिरता सहित विभिन्न कारकों को संतुलित करना शामिल है।

उत्तर: वास्तविक जीवन में, कई देशों में ऐसे कानून और नियम हैं जिनका उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल की सामर्थ्य और दवा के मूल्य निर्धारण को संबोधित करना है। हालांकि, इन कानूनों का कार्यान्वयन और प्रभावशीलता भिन्न हो सकती है। जटिल स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, बौद्धिक संपदा अधिकार, बाजार की ताकतें और दवा कंपनियों की पैरवी जैसे कारक दवाओं की लागत को कम करने में चुनौतियां पेश कर सकते हैं। नवाचार और स्थिरता को बढ़ावा देते हुए दवा तक सस्ती पहुंच की आवश्यकता को संतुलित करना एक जटिल सामाजिक मुद्दा बना हुआ है, जिस पर नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य पेशेवरों और जनता के निरंतर ध्यान और प्रयासों की आवश्यकता है।

Heinz दुविधा के माध्यम से, कोहलबर्ग का उद्देश्य व्यक्तियों के नैतिक तर्क का अध्ययन करना और समझना था और नैतिक विकास के विभिन्न चरणों में यह कैसे विकसित और विकसित हुआ। कोलबर्ग द्वारा प्रस्तावित छह चरण नैतिक परिष्कार के बढ़ते स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं और नैतिक दुविधाओं को संबोधित करने में व्यक्तियों की नैतिक तर्क क्षमता की प्रगति को दर्शाते हैं।


The Heinz Dilemma: Exploring Kohlberg’s Stages of Moral Development

(हेंज दुविधा: कोहलबर्ग के नैतिक विकास के चरणों की खोज)

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Heinz दुविधा व्यक्तियों के नैतिक तर्क का आकलन करने के लिए लॉरेंस कोहलबर्ग द्वारा प्रस्तुत एक प्रसिद्ध नैतिक दुविधा है। इसमें Heinz नाम के एक व्यक्ति की कहानी शामिल है जो एक कठिन नैतिक निर्णय का सामना करता है। यहाँ दुविधा और नैतिक विकास के चरणों की व्याख्या है जो यह दर्शाता है:

हेंज दुविधा (Heinz Dilemma):

Heinz की पत्नी एक जानलेवा बीमारी से पीड़ित है। एकमात्र ज्ञात दवा जो उसे बचा सकती है वह बेहद महंगी है, और Heinz इसे वहन नहीं कर सकता। Heinz पैसे उधार लेने की कोशिश करता है लेकिन आवश्यक राशि से कम हो जाता है। फिर वह अपनी पत्नी के लिए दवा चोरी करने के लिए फार्मेसी में घुसने पर विचार करता है। क्या Heinz को दवाई चुरानी चाहिए, और यदि हां, तो क्यों?

नैतिक विकास के चरणों की व्याख्या:

  1. Stage 1: आज्ञाकारिता और दंड अभिविन्यास (Obedience and Punishment Orientation): इस स्तर पर, नैतिक तर्क सजा से बचने और प्राधिकरण के आंकड़ों की आज्ञाकारिता पर केंद्रित है। इस अवस्था के अनुसार, Heinz दवा की चोरी नहीं करेगा क्योंकि यह कानून के खिलाफ है, और पकड़े जाने पर उसे सजा का सामना करना पड़ सकता है।
  2. Stage 2: व्यक्तिवाद और विनिमय (Individualism and Exchange): इस चरण में, नैतिक तर्क व्यक्तिगत लाभ और पारस्परिकता के आसपास केंद्रित होता है। व्यक्ति अपनी जरूरतों और हितों के साथ-साथ दूसरों के हितों पर भी विचार करता है। यहाँ, Heinz दवा चुरा सकता है क्योंकि उसकी पत्नी का जीवन दांव पर है, और उसका मानना है कि उसकी स्थिति में अन्य लोग भी ऐसा ही करेंगे।
  3. Stage 3: पारस्परिक संबंध (Interpersonal Relationships): इस स्तर पर, नैतिक तर्क दूसरों द्वारा एक अच्छे व्यक्ति के रूप में देखे जाने की इच्छा से प्रभावित होता है। Heinz दवा चुरा सकता है क्योंकि वह एक प्यार करने वाला और देखभाल करने वाला पति बनना चाहता है जो अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए कुछ भी करेगा। वह अपने रिश्ते में शामिल विश्वास, देखभाल और निष्पक्षता को महत्व देता है।
  4. Stage 4: सामाजिक व्यवस्था बनाए रखना (Maintaining Social Order): इस चरण में, नैतिक तर्क सामाजिक नियमों और कानूनों को कायम रखने पर आधारित है। Heinz दवा चोरी नहीं करना चुन सकता है क्योंकि वह मानता है कि चोरी करना कानून के खिलाफ है और सामाजिक व्यवस्था को बाधित करेगा।
  5. Stage 5: सामाजिक अनुबंध और व्यक्तिगत अधिकार (Social Contract and Individual Rights): इस स्तर पर, नैतिक तर्क व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और अधिक अच्छे पर विचार करता है। Heinz दवा चोरी करने का विकल्प चुन सकता है क्योंकि उसका मानना है कि संपत्ति के अधिकारों पर जीवन को बचाने की प्राथमिकता है, और वह जीवन के अधिकार के संरक्षण के सिद्धांत से प्रेरित है।
  6. Stage 6: सार्वभौमिक सिद्धांत (Universal Principles): इस उच्चतम अवस्था में, नैतिक तर्क सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होते हैं। Heinz इस विश्वास के आधार पर दवा चुराने का विकल्प चुन सकता है कि जीवन को बचाना एक आवश्यक नैतिक सिद्धांत है जिसे कानून या सामाजिक अपेक्षाओं की परवाह किए बिना हमेशा बरकरार रखा जाना चाहिए।

Heinz दुविधा की प्रतिक्रिया व्यक्ति के नैतिक विकास के चरण के आधार पर अलग-अलग होती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हर कोई सभी चरणों के माध्यम से प्रगति नहीं करता है, और व्यक्तियों की नैतिक तर्क क्षमता अलग-अलग हो सकती है। इस दुविधा का उद्देश्य उन अंतर्निहित नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों को समझना है जो किसी व्यक्ति की निर्णय लेने की प्रक्रिया का मार्गदर्शन करते हैं।


कोलबर्ग के सिद्धांत की आलोचना

(Critique of Kohlberg’s Theory)

लॉरेंस कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत और कैरल गिलिगन की आलोचना –

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लॉरेंस कोलबर्ग, एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक, ने नैतिक विकास का एक सिद्धांत विकसित किया जिसका उद्देश्य यह बताना था कि व्यक्ति नैतिक तर्क के विभिन्न चरणों के माध्यम से कैसे प्रगति करता है। हालांकि, उनके सिद्धांत को उनके एक छात्र Carol Gilligan की आलोचना का सामना करना पड़ा, जिन्होंने कोहलबर्ग के दृष्टिकोण में कुछ खामियों और सीमाओं की ओर इशारा किया। यह लेख गिलिगन की समालोचना की पड़ताल करता है और उनके द्वारा उठाई गई कुछ प्रमुख आलोचनाओं पर प्रकाश डालता है।

  1. कोहलबर्ग की सांस्कृतिक अंतर की अज्ञानता (Kohlberg’s Ignorance of Cultural Differences): गिलिगन ने तर्क दिया कि कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत नैतिक तर्क में सांस्कृतिक अंतर के लिए जिम्मेदार नहीं है। उनके अनुसार, नैतिक मूल्य और दृष्टिकोण संस्कृतियों में महत्वपूर्ण रूप से भिन्न हो सकते हैं, और कोहलबर्ग के सिद्धांत ने इस महत्वपूर्ण पहलू की अनदेखी की।
    उदाहरण के लिए, विभिन्न संस्कृतियाँ अलग-अलग नैतिक सिद्धांतों जैसे व्यक्तिगत अधिकार, सामुदायिक कल्याण या धार्मिक सिद्धांतों को प्राथमिकता दे सकती हैं। Carol Gilligan ने नैतिक विकास की व्यापक समझ हासिल करने के लिए सांस्कृतिक संदर्भ पर विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया।
  2. कोहलबर्ग के सिद्धांत में लिंग पूर्वाग्रह (Gender Bias in Kohlberg’s Theory): गिलिगन द्वारा उठाई गई एक और महत्वपूर्ण आलोचना कोहलबर्ग के सिद्धांत में मौजूद लैंगिक पूर्वाग्रह थी। कोहलबर्ग के शोध में मुख्य रूप से पुरुष प्रतिभागी शामिल थे, जिसके कारण नैतिक विकास का एक तिरछा प्रतिनिधित्व हुआ। Carol Gilligan ने तर्क दिया कि इस पूर्वाग्रह के परिणामस्वरूप नैतिक तर्क की अधूरी समझ हुई, विशेष रूप से एक महिला दृष्टिकोण से। केवल पुरुष विषयों पर ध्यान केंद्रित करके, कोहलबर्ग का सिद्धांत महिलाओं के अद्वितीय नैतिक अनुभवों और झुकावों को पकड़ने में विफल रहा।
  3. महिला नैतिकता बनाम पुरुष नैतिकता (Female Morality vs. Male Morality): गिलिगन ने माना कि पुरुषों और महिलाओं में अलग-अलग नैतिक और मनोवैज्ञानिक रुझान होते हैं। जबकि पुरुष आमतौर पर न्याय और नियम-आधारित सोच को प्राथमिकता देते हैं, महिलाएं देखभाल, सहानुभूति और रिश्तों को बनाए रखने पर अधिक जोर देती हैं। Carol Gilliganकी आलोचना ने सुझाव दिया कि कोहलबर्ग के सिद्धांत ने महिलाओं की नैतिकता को माध्यमिक और केवल देखभाल पर आधारित चित्रित किया, जबकि पुरुषों की नैतिकता मुख्य रूप से न्याय में निहित थी। इस अतिसरलीकरण ने पुरुषों और महिलाओं दोनों में नैतिक तर्क की बहुआयामी प्रकृति की उपेक्षा की।
  4. देखभाल और न्याय की नैतिकता (Ethics of Care and Justice): “देखभाल की नैतिकता” की अवधारणा को पेश करके Carol Gilligan की आलोचना कोहलबर्ग के सिद्धांत पर विस्तारित हुई। उन्होंने तर्क दिया कि महिलाओं के नैतिक विकास में देखभाल-उन्मुख और न्याय-उन्मुख दोनों दृष्टिकोण शामिल हैं, जबकि पुरुषों का नैतिक विकास मुख्य रूप से न्याय के इर्द-गिर्द घूमता है। देखभाल की नैतिकता ने नैतिक निर्णय लेने में संबंधों, सहानुभूति और करुणा के पोषण के महत्व पर जोर दिया, जिन्हें कोहलबर्ग के मूल ढांचे में पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया था।

उदाहरण: Carol Gilligan की समालोचना को स्पष्ट करने के लिए, आइए एक वास्तविक जीवन के उदाहरण पर विचार करें। एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना करें जहां एक व्यक्ति किसी स्टोर में चोरी होते देखता है। कोलबर्ग के सिद्धांत के अनुसार, उनका नैतिक निर्णय न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित होगा, जैसे अधिकारियों को अपराध की सूचना देना। हालाँकि, Carol Gilliganकी आलोचना इस बात पर प्रकाश डालती है कि महिलाएं भी रिश्तों और देखभाल पर विचार कर सकती हैं। इस मामले में, एक महिला चोर के परिवार के लिए संभावित परिणामों के बारे में सोच सकती है, दुकान की प्रतिष्ठा पर प्रभाव, या पुनर्स्थापनात्मक न्याय की संभावना। देखभाल-उन्मुख तर्क को शामिल करके, न्याय-आधारित दृष्टिकोण की तुलना में महिलाएं एक अलग नैतिक निर्णय पर पहुंच सकती हैं।

निष्कर्ष: लॉरेंस कोहलबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांत की Carol Gilligan की आलोचना ने कोहलबर्ग के मूल ढांचे में निहित सीमाओं और पूर्वाग्रहों पर प्रकाश डाला। सांस्कृतिक मतभेदों पर गिलिगन का जोर और देखभाल-उन्मुख नैतिक तर्क को शामिल करने से नैतिक विकास की हमारी समझ व्यापक हुई, विशेष रूप से एक महिला परिप्रेक्ष्य से। इन आलोचनाओं को स्वीकार करके, शोधकर्ता और सिद्धांतकार पुरुषों और महिलाओं दोनों में नैतिक तर्क और विकास की अधिक व्यापक और समावेशी समझ के लिए प्रयास कर सकते हैं।

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लॉरेंस कोहलबर्ग के सिद्धांतों की कुछ प्रमुख आलोचनाएँ

(Some of the main criticisms of Lawrence Kohlberg’s theories)

पिछले कुछ वर्षों में लॉरेंस कोलबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांतों की कई आलोचनाएँ हुई हैं। कुछ मुख्य आलोचनाओं में शामिल हैं:

  1. सांस्कृतिक और क्रॉस-सांस्कृतिक पूर्वाग्रह (Cultural and Cross-Cultural Bias): आलोचकों का तर्क है कि कोहलबर्ग के नैतिक विकास के चरण पश्चिमी सांस्कृतिक मूल्यों से बहुत अधिक प्रभावित हैं और विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के लिए लागू या प्रासंगिक नहीं हो सकते हैं। व्यक्तिगत अधिकारों और न्याय पर जोर सामूहिकवादी संस्कृतियों के नैतिक ढांचे के अनुरूप नहीं हो सकता है।
  2. लिंग पूर्वाग्रह (Gender Bias): कोहलबर्ग का मूल शोध मुख्य रूप से पुरुष प्रतिभागियों पर केंद्रित था, जिससे उनके सिद्धांत में एक संभावित लिंग पूर्वाग्रह पैदा हुआ। आलोचकों का तर्क है कि उनके चरणों में महिलाओं के नैतिक विकास को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे न्याय के सिद्धांतों पर देखभाल और संबंधों को प्राथमिकता दे सकते हैं।
  3. अनुभवजन्य साक्ष्य का अभाव (Lack of Empirical Evidence): कुछ आलोचकों का तर्क है कि कोहलबर्ग के सिद्धांत में अपने दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त अनुभवजन्य साक्ष्य का अभाव है। सिद्धांत काफी हद तक काल्पनिक नैतिक दुविधाओं और स्व-रिपोर्ट की गई प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता है, जो वास्तविक जीवन स्थितियों में व्यक्तियों की वास्तविक नैतिक तर्क को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है।
  4. संज्ञानात्मक विकास पर अत्यधिक जोर (Overemphasis on Cognitive Development): कोहलबर्ग का सिद्धांत नैतिक तर्क के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में संज्ञानात्मक विकास पर जोर देता है। आलोचकों का तर्क है कि यह नैतिक निर्णय लेने में भावनाओं, अंतर्ज्ञान और स्थितिजन्य कारकों की भूमिका को नज़रअंदाज़ करता है।
  5. व्यावहारिक अनुप्रयोग का अभाव (Lack of Practical Application): आलोचकों का सुझाव है कि कोहलबर्ग का सिद्धांत नैतिक विकास को बढ़ावा देने या वास्तविक जीवन के संदर्भ में नैतिक मुद्दों को संबोधित करने के बारे में व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान नहीं करता है। आदेशात्मक की तुलना में अधिक वर्णनात्मक होने के लिए इसकी आलोचना की जाती है, जिससे शिक्षकों और नीति निर्माताओं को नैतिक शिक्षा को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने के लिए सिद्धांत को लागू करने के तरीके के बारे में अनिश्चित बना दिया जाता है।
  6. व्यक्तिवादी फोकस (Individualistic Focus): कोहलबर्ग का सिद्धांत मुख्य रूप से व्यक्तिगत नैतिक तर्क पर केंद्रित है और नैतिक विकास पर सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों के महत्व की उपेक्षा करता है। आलोचकों का तर्क है कि नैतिकता व्यक्तिगत और सामाजिक कारकों के बीच एक जटिल परस्पर क्रिया है, और कोहलबर्ग का सिद्धांत इस जटिलता को पर्याप्त रूप से पकड़ नहीं सकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां ये आलोचनाएं मौजूद हैं, वहीं कोहलबर्ग के काम ने भी नैतिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और नैतिक विकास को समझने में प्रभावशाली बना हुआ है। शोधकर्ताओं ने उनके विचारों पर निर्माण किया है और इनमें से कुछ आलोचनाओं को बाद के सिद्धांतों और रूपरेखाओं में संबोधित करने का प्रयास किया है।


FAMOUS BOOKS WRITTEN BY KOHLBERG

(कोहलबर्ग द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तकें)

Book Title Short Description
The Philosophy of Moral Development कोहलबर्ग का मौलिक कार्य उनके नैतिक विकास के सिद्धांत को रेखांकित करता है। यह उन चरणों की जांच करता है जिनसे व्यक्ति बचपन से वयस्कता तक अपने नैतिक तर्क में गुजरते हैं।
“Essays on Moral Development: Volume 1” निबंधों का एक संग्रह जहां कोहलबर्ग तर्क, सहानुभूति और न्याय की भूमिका सहित नैतिक विकास के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से विचार करते हैं।
“Essays on Moral Development: Volume 2” निबंधों का दूसरा खंड नैतिक शिक्षा, नैतिकता पर सांस्कृतिक प्रभाव और नैतिक तर्क और व्यवहार के बीच संबंध जैसे विषयों की पड़ताल करता है।
“Moral Stages: A Current Formulation and a Response to Critics” यह पुस्तक कोहलबर्ग के सिद्धांत का एक परिष्कृत सूत्रीकरण प्रदान करती है, आलोचनाओं को संबोधित करती है और उनके मूल विचारों पर विस्तार करती है। यह महिलाओं के नैतिक विकास की भी जांच करता है और क्षेत्र में लैंगिक पूर्वाग्रहों को चुनौती देता है।
“The Measurement of Moral Judgment” कोहलबर्ग नैतिक निर्णय को मापने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पद्धतियों और उपकरणों पर चर्चा करते हैं, जो व्यक्तियों में नैतिक विकास के आकलन में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
“Education, Values, and Mind: Essays for R.B. Davis” कोहलबर्ग समेत विभिन्न लेखकों द्वारा निबंधों का संकलन, शिक्षा, मूल्यों और दिमाग के विकास के चौराहे की पड़ताल करता है। कोलबर्ग का योगदान नैतिक शिक्षा पर केंद्रित है।
“Law, Justice, and Development” यह पुस्तक नैतिक तर्क, न्याय और कानूनी व्यवस्था के विकास के बीच संबंधों की जांच करती है। कोलबर्ग सामाजिक विकास और नैतिक निर्णय लेने में न्याय की भूमिका की पड़ताल करते हैं।

नोट: कृपया ध्यान रखें कि लॉरेंस कोलबर्ग मुख्य रूप से कई पुस्तकों के लेखक होने के बजाय नैतिक विकास पर अपने शोध के लिए जाने जाते थे। तालिका में नैतिक विकास और संबंधित विषयों से संबंधित उनके कुछ उल्लेखनीय कार्य शामिल हैं।

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